हरा तेला जेसिड : इस कीट के शिशु व प्रौढ़ हरे रंग के होते हैं। ये कोमल पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं, पीली हो जाती हैं और अंत में किनारों से सूख जाती हैं।
रोकथाम – कीट के फसल पर दिखाई देने पर 300-400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतर पर छिड़कें।
सफेद मक्खी – यह पीले रंग के कीट होते हैं। जिनका शरीर सफेद रंग के पाउडर का होता है। शिशु व प्रौढ़ दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। ये पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं। जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं। पौधे कमजोर हो जाते हैं। यह कीट मरोडिया रोग भी फैलाता है।
रोकथाम – 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतराल पर छिड़कें।
हड्डा भृंग : सुंंडी व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से हरे पदार्थ को खाते हैं। यह सुंडी अर्धवृत आकार की होती है। और तांबे जैसा रंग होता है। इसके पंखों पर काले रंग के धब्बे होते हैं। सुंडिया पीले रंग की और कांटेदार होती हैं।
रोकथाम- 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर छिड़कें।
तना व फल छेदक सुंडी – फसल में नुकसान सुंडी के द्वारा किया जाता है। जो कि गुलाबी रंग की होती हैं। व्यस्क सफेद रंग का होता है। जिस पर पीले भूरे या काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। सुंडी फल आने से पहले नई शाखाओं में छिद्र करके प्रवेश कर जाती हैं। जिसके कारण शाखाएं मुरझा जाती हैं और सूख जाती हैं तथा पौधे की बढ़वार भी रुक जाती हैं। जब फल लगते हैं तो सुंडियां फलों के अंदर घुसकर उन्हें काना कर देती हैं। नुकसान मई से अक्टूबर तक ज्यादा होता है।
रोकथाम – 75 ग्राम स्पाईनोसैड 45 एस.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर तीन छिड़काव करें।
लाल अष्टपदी माइट – पीले व लाल रंग के शिशु व प्रौढ़ पत्तों की निचली सतह पर जाला बनाकर रहते हैं। ये पत्तों से रस चूसते हैं। इसकी वजह से पत्तों पर सफेद रंग के धब्बे बन जाते हैं। शुष्क मौसम में नुकसान ज्यादा होता है।
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