वर्मी कम्पोस्ट

केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।

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हरी खाद के रूप में ढैंचा का प्रयोग

उत्तरी भारत में हरी खाद के लिए ढैंचा सर्वाधिक लोकप्रिय एवं उत्तम दलहनी फसल है। यह फसल मिट्टी और जलवायु की विभिन्न परिस्थितियों के लिए अनुकूल है। इसे सूखा, जलभराव, लवणता आदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। इस फसल की दो प्रजातियां सैसबेनिया एक्यूलेटा एवं सैसबेनिया रोस्ट्रेटा अपने शीघ्र खनिजकरण, उच्च नाइट्रोजन मात्रा तथा अल्प समय में वृद्धि के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर अच्छा प्रभाव डालती है। इनमें से सैसबेनिया एक्यूलेटा प्रजाति के पौधे आकार में सीधे व लम्बे एवं सूखे के प्रति सहनशील होते है

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सरसों के रोग एवं नियंत्रण

भारत में मूँगफली के बाद सरसों दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है जो मुख्यतया राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं असम में उगायी जाती है। सरसों की खेती कृषकों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि इससे कम सिंचाई व लागत से अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। इसकी खेती मिश्रित फसल के रूप में या दो फसलीय चक्र में आसानी से की जा सकती है। सरसों की कम उत्पादकता के मुख्य कारण उपयुक्त किस्मों का चयन असंतुलित उर्वरक प्रयोग एवं पादप रोग व कीटों की पर्याप्त रोकथाम न करना, आदि हैं। अनुसंधनों से पता चला है कि उन्नतशील सस्य विधियाँ अपना कर सरसों से 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है। फसल की कम उत्पादकता से किसानों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक प्रभावित होती है। इस परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है कि इस फसल की खेती उन्नतशील सस्य विधियाँ अपनाकर की जाये।

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मूंग की खेती

दलहनी फसलों में मूंग एक महत्वपूर्ण फसल है। पौष्टिक गुणवत्ता के कारण इसे अधिक पसंद किया जाता है। मूंग में प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज तत्व एवं विटामिन्स भी होते हैं कम समय में ही पकने के कारण इसे बहुफसलीय चक्र में आसानी से सम्मिलित किया जा सकता है। मूंग की फसल से फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है। मंूग की खेती करने से मृदा में उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। मूंग को खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर जायद/ ग्रीष्मकाल में मूंग की खेती सफलतापूर्वक लाभकारी हो सकती है।

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फलदार पौधों में उर्वरक प्रबंधन

आजकल फलदार पौधों के उत्पादन पर इनके ऊर्जादायक एवं औषधीय प्रभाव वाले गुणों पर अधिक ध्यान है। फल विटामिन, प्रोटीन एवं अन्य पोषक तत्वों के सर्वोत्तम श्रोत होते हैं। फलों के बेहतर उत्पादन के लिए पौधों में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति करना आवश्यक है। पौधों के पोषक तत्व उन तत्वों को कहते हैं जिनकी कमी से पौधे अपना जीवन चक्र पूरा न कर सकें तथा पौधों के स्वास्थ्य पर जिनका सीधा योगदान हो। इन्हीं तत्वों के प्रयोग से ही इन तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। इनकी संख्या 17 है इनमें 9 बहुत पोषक तत्व हैं और 8 सूक्ष्म पोषक तत्व हैं।

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