मूंग हमारे जिले की नहीं पूरे भारत की बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग की नमकीन तथ्य मिष्ठान, पापड़ तथा मुगौड़ी भी बनाई जाती है। इसके अलावा मूंग की हरी फलियां सब्जी के रूप में बेंचकर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं एक एकड़ से लगभग 25-30 हजार की आमदनी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं इसके अलावा मूंग दलहनी फसल होने के कारण भूमि की उर्वरक क्षमता भी वृद्धि करती है। क्योंकि इसकी जड़ों में ग्रन्थियां पाई जाती हैं। इन ग्रन्थियों में वातावरण से नाइट्रोजन को मृदा में संस्थापन करने वाला सूक्ष्म जीवाणु पाया जाता है। इस नाइट्रोजन को प्रयोग मूंग के बाद बोई जाने वाली फसल द्वारा उपयोग किया जाता है।
रबी की फसल काटने के तुरंत बाद गहरी जुताई करें। इसके बाद एक जुताई कल्टीवेटर तथा देशी हल से कर भलीभांति पाटा लगा देना चाहिए ताकि खेत समतल हो जाय और नमी बनी रहे। दीमक को रोकने हेतु 2 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफास की धूल 8-10 किग्रा./एकड़ की दर से खेत की अन्तिम जुताई से पूर्व खेत में मिला दें।
बीज की मात्रा- खरीफ मौसम में मूँग का बीज 6.8 किलोग्राम प्रति एकड़ लगता है | जायद में बीज की मात्रा 10.12 किलोग्राम प्रति एकड़ लेना चाहिये। जायद में अधिक गर्मी व तेज हवाओं के कारण पौधों की मृत्यु दर अधिक रहती है। अतः खरीफ की अपेक्षा ग्रीष्मकालीन मूंग में बीज की मात्रा 10-12 किग्रा./एकड रखें।
बीजोपचार- बुवाई के समय फफूंद नाशक दवा (थिरम या कार्बेन्डाजिम) 2 ग्राम / किग्रा.बीज की दर से शोधित करें। इसके अलावा राइजोबियम और पी.एस.बी. कल्चर से (250 ग्राम) 10-12 किग्रा. बीज हेतु पर्याप्त होता है। बीज शोधन अवश्य करें।
रबी मौसम के लिए - टाइप 1, पंत मूंग 3, एचयूएम 16, सुनैना और जवाहर मूंग 70 ।
खरीफ मौसम के लिए - पूसा विशाल, मालवीय ज्योति, एमएल 5, जवाहर मूंग 45, अमृत, पीडीएम 11 और टाइप 51 ।
रबी व खरीफ दोनों मौसमों के लिए - टाइप 44, पीएस 16, पंत मूंग 1, पूसा विशाल, के 851 और शालीमार मूंग 2 ।
जायद मौसम के लिए - सम्राट, HUM-16, Pant मूंग-1 पूजा वैशाखी, टाइप- 44, पी.डी.एम.-11, पी.डी.एम.-5, पी.डी.एम.-8, मेहा, के. 851।
बोने का समय- मूंग की खेती खरीफ एवं जायद दोनों मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। खेती हेतु समुचित जल निकास वाली दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है लेकिन जायद में मूंग की खेती में अधिक सिचाई करने की आवश्यकता होती है। जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधायें हैं वह फरवरी के तीसरे सप्ताह से 15 अप्रैल तक बुवाई कर सकते हैं।
खाद एवं उर्वरक- मूंग दलहनी फसल होने के कारण अन्य खाद्यान्य फसलों की अपेक्षा इसे नत्रजन की आवश्यकता कम होती है। परन्तु जड़ों के विकाश हेतु 20 किग्रा. नत्रजनए 50 किग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. पोटाश प्रति हे. डालना चाहिए।
सिंचाई की आवश्यकता- प्रायरू खरीफ में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैण् परंतु फूल अवस्था पर सूखे की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती हैण् खरीफ की फसल में वर्षा कम होने पर फलियाँ बनते समय एक सिचाई करने की आवश्यकता पड़ती है।
जायद की ऋतु में मूंग के लिए गहरा पलेवा करके अच्छी नमी में बुवाई करें। पहली सिंचाई 10-15 दिन तथा फिर 10-12 दिन के अन्तर पर 3-5 सिंचाई करें। लेकिन इस का अवश्य ध्यान रखें कि शाखा निकलते समय, फूल आने की अवस्था तथा फलियों के बनने पर सिंचाई अवश्य करें।
खरपतवार नियंत्रण- निराई-गुडाई- मूंग के पौधों की अच्छी बढ़वार हेतु खेत को खरपतवार रहित रखना अति आवश्यक है इसके लिए पहले सिंचाई बाद खुरपी द्वारा निराई आवश्यक है। रासायनिक विधि द्वारा 300 मिली़./एकड इमाज़ा थाईपर 10% SL की दर से बुवाई के 15-20 दिन बाद पानी में घोलकर खेत में छिड़काव करें।
पौध संरक्षण:
कीट: मूंग में विभिन्न रस चूसक कीटों जैसे माहो, सफेद मक्खी, जैसिड के प्रकोप से बचाव के लिए डायमिथिएट 30 ई.सी. की 800 मि.ली. मात्रा में 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
2. फली छेदक इल्ली के लिए ट्राइजोफॉस 40 ई.सी. दवा की 800 मि.ली. मात्रा 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
बीमारियां:
फसल सुरक्षा- ग्रीष्मकालीन में कड़ी धूप व अधिक तापमान रहने से बीमारियों व कीड़ों का प्रकोप कम ही होता है फिर भी मुख्य कीड़े माहू, जैसिड, सफेद मक्खी, टिड्डा आदि से फसल को बचाने हेतु 15-20 दिन बाद 8-10 किग्रा./एकड़ क्लोरोपाइरीफास 2 प्रतिशत या मेथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत की धूल का पौधों पर भुरकाव करें।
पीले पौधे के रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला दें या रासायनिक विधि 100 ग्राम . थिओमेथाक्साम 500 ली. पानी में घोलकर प्रति हे. खेत में छिड़काव करें।
फलियों की तुड़ाई और कटाई- जब फलियां 50 प्रतिशत पक जाये तब फलियों की तुड़ाई करें और दूसरी बार सम्पूर्ण फलियों को पकने पर तोड़ें व फसल अवशेष पर रोटावेटर चलाकर भूमि में मिला दिया जाय ताकि पौधे हरी खाद का काम करें। इससे मृदा में 25 से 30 किलो प्रति हेक्टेयर नत्रजन की पूर्ति आगामी फसल हेतु भी होगी।
उपज- खरीफ में 5.6 कुंतल प्रति एकड़ तक और जायद मूंग की खेती अच्छे ढंग से करने पर 4 5 कु./एकड़ तक आसानी से उपज प्राप्त कर सकते हैं। कुल मिलाकर यदि आमदनी की बात करें तो 25-30 हजार यानि खर्चा काटकर 18-20 हजार की शुद्ध लाभ/एकड़ में प्राप्त कर सकते हैं।